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लेखनी प्रतियोगिता -22-Jul-2023 सीप के मोती


                                 सीप के मोती
       
              रामलाल अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं  के बाद   गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र  हरीश के साथ उसके बड़े से मकान में आये हुए थे। हरीश बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया था। यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु अम्मा ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे। यहीं ठीक है। सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे। ठीक है न?"


       रामलाल पत्नी के बिपरीत कुछ बोल नहीं पाते थे ।बस बाबूजी की इच्छा मर जाती। पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए वह मुम्बई आ ही गए हैं।

          रामलाल का बेटा हरीश एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर था। उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी थी।

             घर में घुसते  हुए  रामलाल ठिठक कर रुक गए। गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके। दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर हरीश बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये।"

- " नहीं बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी।" रामलाल  ने पूछा।

- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"

           रामलाल सहमें हुए कदमों में चलते हुए जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी ।

    क्यौकि  उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे  रामलाल चिहुँक कर चीख पड़े थे।

         चाय पीने के बाद हरीश ने अपने पापा से कहा - "बाबूजी, आइये आपको  अपना  घर दिखा दूँ "

- "जरूर बेटा, चलो। मैं तुम्हारा घर देख लूँ।""

        - "   बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।" हरीश ने रामलाल  को समझाया।

- रामलाल ने पूछा, "तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?" 

          - बाबूजी, यह  मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।" हरीश उनको समझाने लगा।

            थोड़ा ठहर कर हरीश ने आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"

                 वह दौंनौं सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे हरीश ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"

              रामलाल ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ था। रामलाल ने पलट कर बेटे  की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था। 

            रामलाल उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि 'कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। हरीश  की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'

     रामलाल  ने अपने  थैले से एक कागज व कलम  निकाली और उस पर लिखा ," बेटा हरीश  मैं अभी कबाब  नहीं हुआ  अभी तो मैं सीप का मोती हूँ। स्वयं कमाकर  खा सकता हूँ मै अपने गाँव बापिस जा रहा हूँ।  " इतना लिखकर  वह कागज फोल्डिंग में फसा दिय । इसके बाद रामलाल  वहाँ से स्टेशन चला गया।

                    अगली सुबह जब  हरीश पापा के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कबाड़  वाला कमरा खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे। वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है। 

              तबतक रामलाल टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे।  चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी।और घर पहुँच कर चैन की सांस ली।

        जब हरीश लौटकर  कमरे में गया तब उसकी नजर फोल्डिंग में फसे कागज पर  गई।  हरीश ने वह कागज खोलकर पढा़ तब उसे अपनी भूल का अह्सास हुआ।  अब उसके पास पछताने  के अलावा कुछ  नहीं था। वह यह जानता था कि बाबूजी अब कभी  नहीं आयेंगे।


       हमारी यही छोटी सी भूल मां बाप को दूर ककरर देती है।  हमें इस तरह की भूल से बचना चाहिए। हमें अपने बुजुर्ग का सम्मान करन चाहिए । हमारे बुजुर्ग  हमारे लिए  सीप से निकले हुए। मोती है।


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9 Comments

madhura

01-Sep-2023 10:57 AM

V nice

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Anjali korde

29-Aug-2023 11:43 AM

Very nice

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Abhilasha Deshpande

28-Aug-2023 10:15 AM

Nice

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